तन, मन, धन की समृद्धि जाप-साधना से संभव - जैनाचार्य ज्ञानचंद्र श्री णमोत्थुणं जाप व्यवस्था समिति के तप साधना अनुष्ठान के तहत नित्य ज्ञान वाणी



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तन, मन, धन की समृद्धि जाप-साधना से संभव - जैनाचार्य ज्ञानचंद्र 
श्री णमोत्थुणं जाप व्यवस्था समिति के तप साधना अनुष्ठान के तहत नित्य ज्ञान वाणी  


बीकानेर। श्री णमोत्थुणं जाप व्यवस्था समिति के बैनर तले अरहिन्त भवन में चल रहे तप साधना कार्यक्रम में जैनाचार्य श्री ज्ञानचंद्र ने कहा कि ख्वाहिशें इंसान को जीने नहीं देती और इंसान ऐसा प्राणी है जो ख्वाहिशों को मरने नहीं देता। आदमी की इच्छाएं तो अनंत है,उसका एंड नहीं आ सकता । कितना भी उसे पूर्ण करने के लिए भागता रहे तब भी तृप्त नहीं हो पाएगा । लालसा के पीछे नहीं संतोष में जीना होगा,तभी सुख पाएगा। आचार्य जी ने आगे समझाया कि बेजुबान पशु कभी लालसा नहीं रखते। कितना भी अच्छे से अच्छा खाना सामने पड़ा हो पेट भर गया तो वो सब छोड़ देंगे । उन्हें आराम की नींद आती है,और इंसान ही एक ऐसा प्राणी है वो तृष्णा में जीता है। संग्रहवृति ने उसकी नींद तक हराम कर रखी है। आचार्य ने विषय को सफल बनाते हुए कहा कि हर इंसान की तीन इच्छाएं महत्वपूर्ण होती है, तन की स्वस्थता,धन की बढ़ोतरी,प्रतिष्ठा का विस्तार । इन तीनों की प्राप्ति के उपाय महावीर स्वामी ने बतलाए हैं।तन की स्वस्थता के लिए भगवान ने उपवास तो एक अति उत्तम उपाय बतलाया ही है उसके साथ ही मन का संकल्प भी सही होना चाहिये। अगर मन बुढ़ापा या कुछ भी पकड़ता है तो शरीर में कमजोरी और रोग बढ़ता है । सर्प का जहर खाने के बाद भी आदमी को 12 वर्ष तक पता नहीं चला तो वो मरा नहीं और ज्यों ही उसे मालूम चला कि उसने जहर खाया है तो 12 वर्ष बाद भी आधी घंटे में मर गया । यही स्थिति बुढ़ापे की है अगर हमारा मन बुढ़ापा न पकड़े तो वह सदा तरोताजा रह सकता है।

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