जीवन में प्रमाद मत करो- विनोद मुनि



सीधी-सट्ट 




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 ✍🏻 जीवन  में प्रमाद मत करो-  विनोद मुनि म.सा.





बीकानेर। सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के चातुर्मास में शुक्रवार को विनोद मुनि म.सा ने 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. की अनुपस्थिति में उनकी आज्ञा से धर्मसभा को संबोधित किया। विनोद मुनि ने श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि यह जीवन असंस्कारित, असंस्कृत है, इसलिए प्रमाद मत करो।

 शास्त्रकार कहते हैं कि जब तक आयुष कर्म का उदय होता है तब तक जीव शरीर में जी सकता है।  एक बार आयुष खत्म  हो जाए फिर जितना चाहे यहां टिक जाए लेकिन टिक नहीं सकता। इसलिए प्राप्त समय का उपयोग करने में प्रमाद मत करो। विनोद मुनि ने शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि जो शब्द है वह सीमित है लेकिन उसके अर्थ बहुत हैं। जिसका जो चाहे अर्थ निकाला जा सकता है। मानव समूह में रहता है, समूह में रहकर  सबका एक जैसा भाव नहीं रह सकता, इसलिए जैसा हम चाहें, वैसा हर व्यक्ति व्यवहार करे ये जरूरी नहीं है। 

साधना के आयाम बताते हुए विनोद मुनि ने कहा विजयवाणी में इसके दो आयाम बताए गए हैं। पहला जानी हुई बुराई नहीं करनी चाहिए और दूसरा है की गई बुराई को पुन: दोहराना नहीं चाहिए। विनोद मुनि ने कहा कि भगवान की वाणी के माध्यम से प्रमाद के भेद बताये और कहा कि  है साधक, तुम्हारे साथ  कोई भी  अपने स्वभाव  के कारण तुमसे र्दुव्यवहार कर सकता है लेकिन तुम उस वक्त प्रमाद मत करना।

 विनोद मुनि ने अप्रमर्तता को जैन शासन का सूत्र बताते हुए कहा कि इसके अराध्य बन गए तो जिस उद्देश्य में जीव मिला है उससे पार निकल जाएंगे। हमारी साधना का मूल अर्थ अप्रमाद है। उन्होंने तपस्या का उद्देश्य कर्म निर्जरा एवं आत्मशक्ति तथा सामायिक व संवर करने  का उद्देश्य भी यही बताया। कर्म बंध से बचना जीव का उद्देश्य होना चाहिए। उत्तराध्यन सूत्र में गौतम स्वामी से श्रमण प्रश्न करते हैं कि हे गौतम, संसार समुद्र में जहां जन्म-मरण की लहरों से बचने का कोई उपाय है क्या..?, 

इस पर गौतम स्वामी कहते हैं, हां- ऐसा एक स्थान है। जैसे समुद्र में पानी ही पानी है। नाव थपेड़े खा रही है। नाव में जो बैठे हैं, उनके लिए कोई द्वीप, आइलैंड मिल जाता है, वह स्थान है, ठीक वैसे ही एक महान द्वीप है और वह धर्म है। धर्म नाम के स्थल  पर पहुंचा जीव उत्तम गति को प्राप्त कर सकता है। हम सौभाग्यशाली हैं जिन्हें  धर्म स्थान मिल गया है। 

विनोद मुनि म.सा. ने कहा  कि धर्म जीने का विषय है, जिसे हम जितना जीते हैं, उतना हम आनन्द की अनुभूति कर सकते हैं। विनोद मुनि म.सा. ने धर्म और उसके भेद तथा उनके रूप के बारे में श्रावक-श्राविकाओं को विस्तारपूर्वक बताया।


जयपुर संघ ने की चातुर्मास की कामना
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि  आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.के दर्शनार्थ एवं उनके श्रीमुख से जिनवाणी का लाभ लेने तथा जयपुर में आगामी चातुर्मास करने की कामना को लेकर जयपुर संघ शुक्रवार को बीकानेर पहुंचा। जहां संघ की ओर से समस्त श्रावक-श्राविकाओं का अभिनंदन किया गया। संघ सदस्यों ने आचार्य श्री से आगामी चातुर्मास का कार्यक्रम जयपुर में करने की प्रार्थना की। वहीं इरोड़ से भी श्रावक महाराज साहब का दर्शन लाभ लेने के लिए पधारे उनका भी संघ की ओर से स्वागत किया गया।



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