स्वभाव में बदलाव ना लाना दुख का कारण- आचार्य विजयराज



सीधी-सट्ट 




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 ✍🏻 स्वभाव में बदलाव ना लाना दुख का कारण- आचार्य विजयराज जी म.सा.
परमात्मा भी अपने कर्मों से नहीं बचा सकता
बीकानेर। संसारी लोग दो कारण से दुखी होते हैं।पहला स्वभाव से और दूसरा अभाव से दुखी रहता है। कई संसारियों का स्वभाव खराब होता है, इससे वह स्वयं तो दुखी होते हैं, इससे दूसरों को भी दुखी करते हैं। अगर सुखी होना होना है तो स्वभाव को बदलना पड़ता है। श्री शान्त क्रांति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.ने यह बात मंगलवार को अपने नित्य प्रवचन के दौरान सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में श्रावक -श्राविकाआओं से कही। महाराज साहब ने कहा कि हम कपड़े रोज बदलते हैं। बर्तन रोज बदलते हैं और चीजों में भी परिवर्तन लाते हैं लेकिन स्वभाव में बदलाव नही लाते हैं। यही व्यक्ति के दुख का कारण बनता है। बंधुओ हम चाहे जितना सामायिक कर लें, दान- पुण्य कर लें, स्वभाव में परिवर्तन नहीं करते हैं तो कुछ नहीं हो सकता, इसलिए सबसे पहले स्वभाव में सुधार करो।
आचार्य श्री ने कहा कि संसार में ऐसा कोई भी नहीं मिलेगा, जिसके सभी अभाव पूर्ण हुए हों, अभाव तो पुण्य की बदौलत ही पूर्ण हो जाते हैं। व्यक्ति अगर अच्छा पुरुषार्थ करता है तो जीवन में किसी प्रकार का अभाव भी नहीं रहता। लेकिन हम क्या करते हैं, अपने पुण्य को घटाने में,खपाने में लगे रहते हैं। ज्ञानी लोग,संत लोग, महापुरुष कहते रहते हैं लेकिन हम सुनी का अनसुनी करते हैं। फिर एक दिन यह चिंतन भी होता है कि महाराज साहब ने सही फरमाया था। परन्तु बंधुओ बाद में क्या! लेकिन एक बात सदैव याद रखो,यह छोटा सा सूत्र ध्यान में रख लें कि मुझे परमात्मा भी अपने कर्मों से नहीं बचा सकता।जब कर्म उदय में आते हैं तो ना पत्नी,ना पुत्र और ना परिजन कोई क्या कर लेगा..?।
महाराज साहब ने बताया कि सुबह एक घर में गया तो बहन मिली, सुख- साता पूछी तो कहा चल- फिर नहीं सकती बाकी सब ठीक है ।अब बताओ क्या ठीक है...?। इसलिए सदैव ध्यान रखो, कर्मों को दया नहीं है। वहां अन्याय नहीं होता, वहां न्याय होता है। दूध का दूध और पानी का पानी होता है। इसलिए हमें अपने जीवन में कर्म से सावधान रहना चाहिए। महाराज साहब ने ऋषभ देव का प्रसंग बताते हुए कहा कि वे पूर्व जन्म में जागीरदार थे। एक बार शिकार के लिए निकले, रास्ते में उन्हें श्वेत वस्त्र धारण किए, मुख पट्टिका बांधे, सर मुंडे हुए संत मिल गए, उन्हें देखते ही जागीरदार को क्रोध आ गया। महाराज साहब ने कहा कुछ लोग काले वस्त्र वाले और कुछ सफ़ेद वस्त्र वालों को शुभ नहीं मानते हैं। उन्होंने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि इन्हें जहां है वहीं नजरबंद कर दिया जाए। सैनिकों ने उन्हें वहीं रोक दिया। जागीरदार चल पड़े, सुबह से शाम होने को आई, संत वहीं रहे, जागीरदार सो गए, अचानक नींद खुली तो याद आया कि संतो को नजरबंद किया था। सैनिकों को बुलाया और पूछा अरे, उन संतो को छोड़ा कि नहीं। सैनिकों ने कहा आपकी आज्ञा बिना कैसे करें। जागीरदार ने उन्हें हाथ जोड़ कहा संत जी नगर में जाओ,गौचरी करो, संत नगर में पहुंचे, उन्हें 12 घड़ी का विलंब हुआ, किसी के कोई तप और किसी का कोई उपवास था, उन्हें पारणा करना था। बाद में वह ऋषभ देव बने लेकिन उन्हें 12 महिने तक अन्न-जल नहीं मिला,अन्तराय कर्म का ऐसा बंध था। महाराज साहब ने कहा कि मैं कहना चाहता हूं कि भगवान भी कर्म बंधन से नहीं बचे तो हम क्या हैं। बंधुओ हमें कर्म बंधन से बचना है।
तप और ध्यान में बीत रहे दिन
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के सानिध्य में श्रावक-श्राविकाऐं तप-जप-ध्यान में अग्रसर हैं। वरिष्ठ श्रावक कन्हैयालाल भुगड़ी ने मंगलवार को २७  वें चौविहार उपवास(बगैर अन्न-जल) के प्रत्य2यान करवाए। श्रीमती प्रेमलता बांठिया ने अठाई तप की पारणा की और श्रीमती सुनीता सुखाणी ने सात की तपस्या के प्रत्यख्यान किए।  बाहर से आए आचार्य श्री के दर्शनार्थ, उनके श्रीमुख से जिनवाणी सुनने और उनके सानिध्य में धर्म-ध्यान करने के लिए मंगलवाड़, उदयपुर, बैंगलुरु, इरोड़, चैन्नई और मुंबई से श्रावक-श्राविकाओं का आवागमन जारी है। श्री संघ की ओर अतिथियों का स्वागत- सत्कार किया गया।  



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